ज्यादातर माता-पिता अपने सन्तान के सुरक्षित भविष्य के लिए हर सम्भव प्रयास करते हैं।तन-मन-धन से स्वयं को समर्पित कर देते हैं बच्चों को उनके लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए।किंतु ज्यादातर बच्चे अपने सफलता के आकाश में इतनी ऊंची उड़ान भर जाते हैं कि अपने उन स्वजनों को ही विस्मृत कर देते हैं, जिन्होंने स्वयं को नींव का पत्थर बना दिया।अपने फर्ज का कर्ज उतारना बिल्कुल भूल जाते हैं।लेकिन मैं एक सुखद कथा सुनाने जा रही हूं।
अभय अपने परिवार का बड़ा बेटा था, उससे छोटा एक भाई कृष्णा तथा सबसे छोटी बहन मंगला।अभय के पिता एक छोटे से किसान थे।हिस्से में पाँच बीघा जमीन प्राप्त हुई थी, जिसमें सीज़नल अन्न एवं सब्जियां उगा लेते थे।4-5 गाय-भैसें पाल रखी थीं, जिनका दूध,घी बिक जाता हैं, उपले ईंधन के काम आते थे।जैसे -तैसे गृहस्थी की गाड़ी खिंच रही थी।
न जाने यह पूर्व जन्म का प्रभाव होता है या ईश्वर का अजीब न्याय।एक ही परिवारों में जन्मे सन्तानों के रंग,रूप, बुद्धि, भाग्य में जमीन-आसमान का अंतर क्यों आ जाता है, मेरी समझ से परे है।जहां अभय अच्छे व्यक्तित्व का युवक था, साथ ही मस्तिष्क भी तीव्र था।वहीं कृष्णा जिसका अपभ्रंश किसना हो गया था, लगभग पूर्ण कृष्ण रंग के साथ अल्प बुद्धि का था।हां, शरीर से अवश्य हृष्ट -पुष्ट था।बालपन से ही पिता के साथ खेती एवं पशुपालन में हाथ बंटाता था, वैसे खूब परिश्रमी था, लेकिन पढ़ने में बिल्कुल मन नहीं लगता था।परिणामतः अध्यापकों की कृपा से किसी तरह आठवीं पास कर लिया, फिर पढ़ाई छोड़ दिया।
अभय ने गांव के ही इंटर कॉलेज से स्वाध्याय से प्रथम श्रेणी से बारहवीं उत्तीर्ण कर लिया।कोचिंग करने की स्थिति तो थी नहीं।किसी रिश्तेदार से पिछले साल की कोचिंग की किताबें तथा नोट्स की व्यवस्था हो गई।एक वर्ष लगन से तैयारी करने के उपरांत रुढ़की इंजीनियरिंग कॉलेज में चयन हो गया।किंतु चार साल की पढ़ाई तथा रहने, खाने का खर्च कम तो नहीं होता।तब शिक्षा लोन का चलन आम नहीं था।अतः अभय के पिता ने अपनी एक बीघा जमीन गिरवी रखकर पैसों की व्यवस्था की।हितैषी रिश्तेदारों ने समझाया कि यदि अभय ने कहीं बाद में मुँह मोड़ लिया तो तुम क्या करोगे।अभय के पिता ने कहा कि यदि भाग्य में यह दुर्दिन भी लिखा होगा तो भुगत लेंगे।किसना तो वैसे भी पढ़-लिख नहीं सका,अभय के भविष्य को नहीं बिगड़ने दूंगा।उन्होंने बहुत बड़ा जुआ खेला था।
अभय एक बेहद समझदार, परिश्रमी एवं जिम्मेदार युवक था।उसे अपनी पारिवारिक स्थिति का पूर्ण भान था।उसने दिन-रात एक कर पढ़ाई कर प्रथम वर्ष अत्यंत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर लिया, परिणामस्वरूप उसे वजीफा प्राप्त हो गया, जिससे कॉलेज फीस की व्यवस्था हो गई।पुस्तकों की व्यवस्था कुछ लाइब्रेरी, कुछ सीनियर छात्रों से कर लेता था।गांव या छोटे शहरों से आने वाले बहुत से बच्चे अक्सर इस नए वातावरण की चकाचौंध में अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं,किंतु अभय ने मन को पूर्ण नियंत्रण में कर रखा था।ऐसा नहीं था कि उसे भटकाने वाले लोग नहीं मिले, लेकिन फालतू के कार्यों में वह अपना एक मिनट भी जाया नहीं करता था।
उधर पिता एवं छोटा भाई अपने शेष खेत में पसीना बहा रहे थे।किसना खेत की सब्जियां स्वयं मंडी में ले जाकर बेचता था जिससे ज्यादा बचत मिल जाता था।पिता ने बाहर रहने वाले एक रिश्तेदार की 4-5 बीघा जमीन आध-बटाई पर ले लिया था, लेकिन इन सब प्रयासों के बाद भी केवल घर खर्च ही निकल पाता था।छोटे किसान दैवीय आपदाओं से भी त्रस्त रहते हैं, कभी सूखा, कभी अतिवृष्टि, कभी कीटों का आतंक, कभी पाले का कहर।अभय की चार वर्षों की शिक्षा में 2 बीघा जमीन और गिरवी रख देना पड़ा।
कैम्पस सेलेक्शन में एक अच्छी कम्पनी में अभय का चयन हो गया।जॉब लगते ही कन्याओं के पिता अपने लुभावने प्रस्तावों के साथ अभय के घर उपस्थित होने लगे।किंतु अभय ने अपने पिता से स्पष्ट कह दिया कि 5-6 वर्ष तो विवाह के बारे में सोचना ही नहीं है।
जॉब प्रारंभ करते ही उसका सर्वप्रथम लक्ष्य था धन एकत्रित कर के गिरवी रखी हुई जमीन को छुड़ाना।अल्पतम खर्च में जीवनयापन करते हुए एक वर्ष में ही जमीन छुड़ा लिया।दूसरे साल में कच्चे से मकान को दो मंजिला पक्के मकान में परिवर्तित कर लिया।सिंचाई के लिए ट्यूबवेल तथा किसना के रोजगार के लिए धान से चावल बनाने की मशीन तथा स्पेलर लगवा दिया।घर को टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन,एसी सभी आधुनिक सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण कर दिया।
अब अगला लक्ष्य था, बहन का अच्छे घर-वर से सम्बंध।लेकिन समय हर कार्य को निर्बाध होने कहाँ देता है।
बीए करते समय दूसरे गांव के एक लड़के दीपेन से मंगला का प्रेम-प्रकरण प्रारंभ हो गया।एक तो विजातीय दूसरे गलत आदतों वाला था वह लड़का, उसके सुंदर शक्ल पर साधारण रूप-रंग की मंगला मोहित हो गई थी।सीधी-साधी मां एवं भाई को कुछ भी ज्ञात नहीं था।जब अभय ने मंगला के विवाह की बात छेड़ी, तब मंगला ने कहा कि मैं तो दीपेन से ही विवाह करूंगी।सबने समझाया,डांटा-मारा, किंतु उसपर तो आशिकी का भूत सवार था।अभय नाराज तो अत्यधिक था लेकिन बहन की जिंदगी बर्बाद नहीं होने दे सकता था।
घर में पता चलने के 2-3 दिन बाद मौका पाते ही मंगला दीपेन के साथ चली गई।प्रातः पता चलते ही अभय-किसना कुछ खास लोगों को लेकर दीपेन के घर जाकर परिवार वालों को धमकाया, तो उन्होंने दीपेन का पता दे दिया।वे मंगला को वापस ले आए और दीपेन को डराकर मंगला से दूर रहने चेतावनी दे दी।
अभय मंगला को लेकर कुछ समय के लिए बेंगलुरु चला गया।पीछे दीपेन के परिवार ने उसका सजातीय कन्या से विवाह कर दिया।5-6 माह में मंगला के सर से भी प्यार का बुखार उतर गया, फिर एक सरकारी नौकरी पेशा सुयोग्य युवक से उसका विवाह कर दिया अभय ने।अभय ने अपने परिवार को पूर्णतया व्यवस्थित कर दिया था।पूरी रिश्तेदारी तथा गांव में सभी उसकी प्रशंसा कर रहे थे कि बेटा हो तो उसके जैसा, पूरे घर का कायापलट कर दिया।अपने साथ साथ परिवार की भी किस्मत चमका दिया।
खैर, अभय ने अपने फर्ज के कर्ज को उतार कर था।उसने स्वयं द्वारा निर्धारित पांच वर्षों में अपने साथ पूरे परिवार का उत्थान कर दिया था।
कालांतर में एक पढ़ी लिखी युवती से उसका विवाह हो गया।मजेदार बात तो यह थी कि परिवार की अच्छी स्थिति तथा किसना के रोजगार में लग जाने के कारण एक गरीब परिवार की सुंदर कन्या से किसना का विवाह भी हो गया अगले साल।किसना रूपवती पत्नी पाकर निहाल हो गया।अभय से पहले ही किसना एक प्यारे से बेटे का पिता भी बन गया।
यह थी एक सच्चे संघर्ष की सुखद, सुखांत कहानी।
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